भूतिया गांव की हवेली | bhutiya kahani

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मेरी दादी हमेशा मुझे और मेरे भाई को महोबा नाम के एक गांव के बारे बताया करती थी। उस गांव में जो भी जाता वहां से वापस नहीं आ पाता था। इतने साल पहले मैंने वो कहानी सुनी थी पर आज भी वहां लोग जाने से डरते थे एक दिन मैं अपने भाई के साथ वहां के लिए निकली जब मैं वहां पहुंची तब मुझे ऐसा कुछ डर का एहसास नहीं हुआ और वहां तो सभी लोग अपनी अपनी दुकानों पर काम कर रहे थे और घर भी ज्यादा पुराने नहीं थे हम बस बाहर से वो गांव देख कर वापस आ गए।
हम दोनों वहां से आ तो गए थे पर अब भी हम वो हवेली देखना चाहते थे जिसके बारे में हमारी दादी ने हमें बताया था जहाँ वो घर की मालकिन आज भी रहती थे और आखिर क्या हुआ था वहां ये सब जानने की हमारी बहुत इच्छा थी इसलिए अगले दिन मैं और मेरा भाई हमारे पास के दोस्तों को अपने साथ लेकर उस जगह के लिए निकल पड़े सभी उस जगह को एक बार देखना चाहते थे आखिर वहां क्या हुआ था। और हम वैसे भी भूतो पर बिलकुल विस्वास नहीं करते थे हमें लगता था वहां के लोग नहीं चाहते की हम उस जगह पर जाए इसलिए ये अफवाह फैला रखी है इसलिए हम सभी अगले दिन निकल गए फिर से वहां उस गांव को देखने।

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जब हम उस गांव के अंदर घुसे वहां सभी हमें बड़े अजीब तरीके से देख रहे थे मेरा भाई अलोक तो थोड़ा डर रहा था पर उसके दोस्त उसके साथ मजाक करने लगे। हमारी कार काफी अंदर आ चुकी थी उस गांव में इसलिए मैं कार को वही रोका और नीचे उतर के हवेली के बारे में पूछा। पहले तो उन्होंने मेरी तरफ थोड़े गुस्से के लहज़े में देखा और हॅसते हुए मुझे रास्ता बता दिया। मैं बिना बोले चुप चाप कार में आकर बैठ गयी। हम काफी देर तक इधर उधर घूम रहे थे शाम हो चुकी थी पर फिर भी देखने की इच्छा मेरी खत्म नहीं हुई थी मैं और देखने चाहती थी

तभी हमारी आँखों के सामने वो हवेली थी अचानक वहां के चौकीदार ने मेरी खिड़की में देखा। ऐसे अचानक उसके चेहरे को देख मैं चिल्ला पड़ी पर फिर खुद को नार्मल करके मैंने उनसे उस हवेली के बारे में पूछा।
वो बोले मैं यहाँ तुम लोगो की तरह ही घूमने आया था और यहाँ तब से रह रहा हूँ अब तुम लोग भी वापस नहीं जा पाओगे। मैं उनकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दी और वहां के बारे में पूछने लगी।

उन्होंने मुझे वहां के बारे में बताना शुरू किया :यहाँ आज से ८० साल पहले यहाँ की मालकिन रूपमती रहती थी जैसा उनका नाम था वैसे ही गुण पर उनसे जलने वाले भी काम न थे। उनकी खुद की बहन उनसे जलती थी क्योकि रूपमती को बहुत लोग मानते थे वहीँ शीलमति को कोई ज्यादा इज्जत नहीं देते थे शीलमति हर दिन खुद को सवारती सजती पर वही रूपमती लोगो की मदद करती ऐसे ही बहुत से दिन बीत गए वक़्त के साथ शीलमति का गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था।
कुछ वक़्त में दोनों गर्ब्वती हुई पर अभी भी रूपमती के बच्चे के लिए पूरा गांव दुआ कर रहा था वही शीलमति को कोई पूछ भी नहीं नहीं रहा था इसलिए शीलमति ने बड़ी चालाकी से एक युक्ति खोजी और रूपमती पर चरित्रहीन होने का आरोप लगाया पहले तो लोगो ने शीलमति की बातों पर यकीन नहीं किया फिर उसने झूठे गवाह बनाये और रूपमती को सज़ा दिलवाई उस वक़्त रूपमती को सज़ा के रूप में सभी के सामने जला दिया गया वो रोती रही और खुद के बच्चे की जान के लिए भीख मांगी पर खुद राजा ने भी उसकी एक न सुनी जलते जलते रूपमती ने पूरे गांव को श्राप दिया की मेरी मौत के बाद ये जगह पर अब कोई नहीं बचेगा और जो भी यहाँ आएगा वो यहाँ ज़िंदा नहीं रहेगा बस एक आत्मा रहेगा।

जैसे ही हमने ये सुना हम तो बहुत डर गए और अंदर घुसे बिना ही भागने लगे तभी मुझे रूपमती की आत्मा दिखी न जाने क्यों मैंने उनको माँ कहकर बुलाया और उंनसे अपने जाने की भीख मांगी। माँ सुनते ही वो जोर जोर से रोने लगी और कुछ पल बाद ही हम उस गाँव के बाहर खड़े थे। हम एक दूसरे को सही देख कर बहुत खुश थे आखिर हम बच गए थे और आते ही हमने दादी को सारी बात बताई तब मेरी दादी पहले तो बहुत गुस्सा की फिर उन्होंने हमें वो सच बताया जो हमारे लिए अनजाना था हमारी दादी ही शीलमति थी आज जिनके कारण आज वो गांव शमशान था।

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